जल की गति को रोकना क्या बांध से
पथ निरंतर उसे चलना पडेगा
पांव में चुभ रहे हो कांटे मगर
कष्ट यह उसको सदा सहना पडेगा
रूक पडे जो देख तिखी ढलान को
है नहीं यह भाग्य में तेरे लिखा
कर सके जो मौन सुंदर कल्पना
वो कला है बस कवि को ही मिला
है तेरा जीवन बहती मझधार में
छोडकर जिंदा तू रह सकता नहीं
गा सके जो गीत सुंदर तितलियाँ
वेश वो तू कभी धर सकता नहीं है
है धरा यह बोझ से भारी अगर
वेग गहरी ढलानों का तूझे सहना नहीं है
रो पडे जो जिंदगी की फलसफा पर
रोग वो तुझको कभी लगना नहीं है
जानता है कण कण में हैं तु मिला
है धरा पर अवतरित एक ईश सा
मौत और जीवन तुम्हारा फैसला
है बहा सारी धरा पर सुनहरे गीत सा
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