दौलतराम के आंगन मे आज
दिवाली मनाई जा रही है।
हर दिवार को देखो जैसे
अंधेरी रात में ईठलाई जा रही है ।
सजा है चांद सा रौशन दिया
हर ओर।
हर रंग और कुचे को
दौलत में मिलाई जा रही है।
जरा सी देर में खनकेगा
हर मेज पे सिक्का।
अभी दौलतराम की नवेली दुल्हन
नीलम से सजाई जा रही है ।
जो वो कोने में बैठा है,
फेंकू कुछ देर से।
वो हनुमान है
नाटक में ईन कसाई के।
जलेगी आग जो लंका में
धू धू कर
बांधी जा रही हे पूंछ में
इस मिताई के।
मिलेगा जुट का कपडा
नत्थू और कुशेसर को।
अभी रावण के हाथों ही
लंका जलाई जा रही है ।
वो जो डब्बा बंद है तोहफा
रखा कोने में तिपाई पे
चमकता खून है उसपे
पलटन की कमाई के
रहेगा रात भर जारी
जो नाटक चल रहा है।
सुबह फेंकू के हिस्से में
आयेगा भोज का जूठन ।
ये किस्मत है
हमारे थारू ओर तराई के
जलेंगे राम भी आग में
इन कसाई के ।
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