बुधवार, 5 नवंबर 2014

योजना

जख्म दिल के उभर आते हैं
जब कोई चोट खाता है।
दो आसूं टपकते है
और गालों पर सुख जाता है।

कहो करें कोई तो,
फिर क्या करे?
आसूं पोछे कि बस
उन्हीं से रूठ जाये।

सितम सहने की आदत हो
तो कोई सब्र करे।
इंसाफ चाहे तो
तो क्या कोई सब्र करे।

अजीब होते है
तुगलकी फरमान जारी हररोज
कि कोई चाहे तो चाहे
पर सब्र करे

मैं चाहता हूं
एक स्वपन बनूँ
कोई चाहे तो  मुझे करे स्वीकार
कोई चाहे तो फिर सब्र करे।

रंग घूलते है
जिद जल मे मिलने की
अपना समायोजन
कोई योजना नहीं होती ।

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