जो अपनी बात पर
खडा होता है।
कहीं ना कहीं
सलीबों पे टंगा होता है।
जात मजदूर की
पुछी नही जाती।
वो तराजू पर
बस बटखडा होता है।
चाहत में कहा किसी का
भला होता है।
वो बस समाज का
मसखरा होता है।
मयस्सर रात को नहीं
भोजन की थाली जिसे
वो ही मंदिरों की
द्वार पर खडा होता है।
लिखी जाती हैं जिसके
कारण हजारों लेख पन्नो पर
वो विचार भी
कही अधमरा होता है।
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thanks ....