सर्दी की एक ठिठुरती रात में
अधनंगी अंधेरी सडक पर
सरसराती एक कार
काली स्याह
जैसे अपने कर्मों पर
खुद ही कालिख लपेटे
अजीब सुर में घनघनाती
स्ट्रीट लाइट की पोलो को
निरंतर पीछे धकेलती ।
कहीं से आ रही है।
अंधेरे में बस उसकी
परछाई ही दिख रही है
आकर सडक किनारे
घने पेडों के नीचे रूकती है।
और एक जनानी परछाई अपने
सर और जिस्म को चादर में
छुपाते पास के घर में
तेज कदमों से घुस जाती है।
उस परछाई के गौण होते ही
कार फिर से चल पडती है
और अंधेरे में कहीं छुप जाती है
इधर जिदंगी धीरे धीरे
गर्म हो रही है।
सुरज निकलने को है।
सुबह उसी घर से
मनमोहक और सुरीली
कृष्ण आरती की धुन आ रही है।
अब दिन हो गया है।
स्ट्रीट लाइटें बंद हो चुकी है
कोई उसकी तरफ नही देखता
वह बस रात की कालिख
साफ करेगी दिनभर
आज भी और कल भी।
शनिवार, 15 नवंबर 2014
रात में दुनिया
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