अरे बाप रे सुना है प्यार में झगडे
प्यार की निशानी है।
मेरे परोस में इसकी
जीती जागती कहानी है।
सुबह की चाय के झगडे मे
प्यार की कुछ ऐसी हवा चलती है।
बिस्कुट प्लेट में मरद के भांती स्थिर ।
चाय औरत की तरह उबलती है।
जब खाते हैं पंडित जी तो सर पे
पंखे के बदले पंडिताइन रहती है।
शायद इसी कारण पंडित जी पे
छाई दुबली पतली चिकनाई रहती है।
किराना दुकान हो या हो
महतो की सब्जी का ठेला।
हर चौक चौराहे पर चलता है
पंडिताइन का खेला।
पंडित बेचारे क्या करें
रहते हैं रेलमपेल में
क्योकि ठेलती आ रही है
सदियों से पंडिताइन अपने खेल से ।
एक दिन पंडित ने सोचा
आज चुप रहना नहीं है।
संवैधानिक चुनौती को
अब सहना नहीं है
सामने से आ गई
पंडिताइन लहराते हुए।
सहमे पंडित ने सोचा
अब कुछ कहना नहीं है।
देख कर पंडित जी को
आता है एक ख्याल।
बंधा है बैल एक बेबस
खूंटे में कसाई के ।
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