शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

रात का जज्बात

जो रात गुजरी है वो रात क्या जाने
हुई है बात जो  वो बात क्या जाने
सोयी पडी खोई खामोश दुनिया
अंधेरी रात का जज्बात क्या जाने
जो दाग लगे है चांद के चेहरे पर
दर्द उसका तारों की बारात क्या जाने
बेवजह लौ मे जलते पंतगो की आरजू
दहकते दीये की स्याह आग क्या जाने
धुंधली आखों से शहर को निहारते
बहती नदी की दिल की बात
शहरों के चमकते रात क्या जाने
खिले थे फुल चंद गुलशन में बेखबर
धिनौनी करतूतों की बिसात क्या जाने
सुनहरी जिल्द मे सोते सफेद पन्ने
रोते शब्दों का अहसास क्या जाने

द्वारा
आदर्श पराशर