रविवार, 15 जून 2014

जिदंगी जी रहा हूँ मैं

शौक सारे पुरे हो जायें
तो जिंदगी अधूरी लगती है
इसलिए मैंने अपने शौक दबाये हैं
और जिदंगी जी रहा हूँ

दर्द सारे खत्म हो जायें तो
सुख कम लगने लगते हैं
इसलिए मैंने अपने दर्द समेटे हैं
और जिदंगी जी रहा हूँ

इश्क अगर आज ही हो जाये तो
जिंदगी खुश्क हो जाती है
इसलिए मैंने अपने को संभाला है
और जिदंगी जी रहा हूँ

खफा हो जाना लाजिमी है
पर फिर समझौते नहीं हो पाते
इस लिए मैंने मुस्कुराना सिखा है
और जिदंगी जी रहा हूँ

मन की बातें मन में रखने से
मन बेचैन हो जाता है
इसलिए कविताएँ लिख कर
जिदंगी जी रहा हूँ


सोमवार, 2 जून 2014

प्रश्न

प्रश्न
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जल जो आवेग से
पत्थरों की सतह पर
मार कर थापें
गतिशील हैं निरंतर
प्रश्न यह है कि
वह रूकता क्यों नहीं
यह आवेग ,
क्या  उसके रूदन का
संगीत नहीं है
क्या प्रश्न यही है
नहीं शायद
वेग  जो गहरी ढलानों के
शीर्ष से उसको मिला है
क्या उसके झरने का
नैमित्तिक कारण  नही है
प्रश्न यह है कि
क्या पत्थरों की
ऊंची शिलाओं की
चोट खाकर भी बहना  
उसकी उडान है
या उसकी परतंत्रता
प्रश्न यह नहीं है
क्या वह चाह कर भी
रूक सकता है?
क्या उसकी लहरें
उसके नियंत्रण में है
प्रश्न यह है कि
अगर वे अपने
वश में नहीं है
तो उसके बहने को
उसका जीवन क्यों कहते हैं
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द्वारा
आदर्श पराशर