मंगलवार, 11 अगस्त 2015

लेकिन तुमको बढना होगा ।


सामने दानव की भांति चट्टान खडे होगें।
खुन के प्यासे अनगिनत इंसान खडे होगे।
लेकिन तुमको बढना होगा।
भुख से व्याकुल हो अंतरिया ऐंठी होंगी ।
पीछे घायल साथियों की भीड बैठी होंगी।
लेकिन तुमको बढना होगा।
रो रही होगी परेशान अम्मा बैठी द्वार पर।
नजरें लगी होंगी सबकी टी.वी अखबार पर।
लेकिन तुमको बढना होगा।
हजारों प्रश्न होंगे दबे तुम्हारे अंदर सिने में ।
कोई रस ,गीत नहीं  होगा तुम्हारे जीने में।
लेकिन तुमको बढना होगा।
घर मे तेरे, एक बेटी बिन व्याही होगी।
बुढे बाबा अम्मा कीआँखे काली होगी।
लेकिन तुमको बढना होगा।
सारी दुनिया आखें मुंदे सो रही होंगी।
तेरी खातिर एक अबला रो रही होगी।
लेकिन तुमको बढना होगा ।
अंधेरी रातों के स्वपन बडे भयावने होगें।
रोते कुत्तो की चींखे बहुत डरावने होगें ।
लेकिन तुझको बढना होगा ।
संभव है तुझको मरना होगा।
फिर झंडे मे लिपटे तु गर्व से हंसता होगा।
जीत की खुशी में भी लेकिन सारी दुनिया।
तेरी खातिर रोती होगी।
भले नही जले दिये तेरी याद में लेकिन।
लेकिन मेरी खातिर,  देश की खातिर।
तुमको बढना होगा।

।।।।।।।।।।
आदर्श पराशर

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

सलवटें

हजारों ख्वाहिशें है दरमियाँ
तेरे मेरे बीच मगर ।
कुछ सिलवटें भी है
जो हमें दिखती तो नही हैं।

हजारों तारे हैं इस
आसमां में लेकिन
फासले से सब तारे
चांद सी दिखती तो नहीं है।

खिले पतझड में जो
फूल बनकर।
सावन भी उन्हें कभी
सुंदर दिखती तो नही है।

नजारे लाख रौशन हो
तो क्या हुआ। 
पंतगो को अपनी किस्मत
पर दिखती तो नहीं है।

रहा कुछ खास ही रिश्ता
अंधेरे से हमारा।
पर उजाले में मुझे
दुनिया दिखती तो नही है।

चलो चलता हूं आज फिर से
कहीं दुर तेरे साथ।
इस जिंदगी में हिसाब 
अपनी मिलती तो नहीं है।

कर ले लाख कोशिशे भले ही
चांद भी लेकिन।
प्यासी धरती की  अधरे उसको
कभी मिलती तो नहीं है ।





सोमवार, 20 जुलाई 2015

Sun rays

You are just like ,
A sweet little bird
Which is sitting on my terrace.
I can look at you
I can hear your chirps
I can enjoy your gathering
I can feel your essence
But
I can't
Touch you. ..
Talk to you. .
I can't
Feel your feelings
But do you know
You are blocking the sun rays
By sitting on my terrace
Doesn't matter that
You are also burning
But why I will loose anything
I don't know
Why you are here
I don't know
you know me or not
It's ok I am enjoying
Your presence here
But
I don't know you are
Giving up anything or not
But I am loosing
My sun rays...

Copyright @ Adarsh Prashar
04/07/2015

रविवार, 1 मार्च 2015

मैं लिखुंगा

मैं लिखुंगा वो सारे अहसासों को
जो बंद कमरों के चारदीवारी में कटी है
उन सभी शुष्क लम्ही जज्बातो को
जो छत के धीमे पंखो को तकते कटी है
उस छोटी सी धुंधली सी खिडकी को
जिसे खोल दुनिया समेटा करता था मैं
एक सफेद और एक काले कबूतर को
जो दिन भर झूम झूम गूटरगू फाग गाते
उस दुर बहुत दूर खडी पानी टंकी को
जिसे घंटो बिना मतलब ताका है मैंने
उस मस्जिद की अजनबी अजान का
जो मेरा न हो के भी मेरा बन गया था
उन दिन के सपनों को जो देखे थे मेरे
खुली हुई विरान सफेद निगाहों ने
उस कलम और सफेद कागज का
जो काले हुए मेरे बेतरतीब हाथों से
मैं लिखुंगा वो सारे अहसासों को
जो मुझे मजबूर करती थी कविता को

शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

रात का जज्बात

जो रात गुजरी है वो रात क्या जाने
हुई है बात जो  वो बात क्या जाने
सोयी पडी खोई खामोश दुनिया
अंधेरी रात का जज्बात क्या जाने
जो दाग लगे है चांद के चेहरे पर
दर्द उसका तारों की बारात क्या जाने
बेवजह लौ मे जलते पंतगो की आरजू
दहकते दीये की स्याह आग क्या जाने
धुंधली आखों से शहर को निहारते
बहती नदी की दिल की बात
शहरों के चमकते रात क्या जाने
खिले थे फुल चंद गुलशन में बेखबर
धिनौनी करतूतों की बिसात क्या जाने
सुनहरी जिल्द मे सोते सफेद पन्ने
रोते शब्दों का अहसास क्या जाने

द्वारा
आदर्श पराशर