मंगलवार, 29 जुलाई 2014
सपने
सपने बुनते ऊचाईयों को छुने की
जिंदगी के दुख पे मौन
कचरे मे भी कमल खिलाने की कोशिश
करता एक नन्हा सा बच्चा
किस्मत पर रो सकता है
पर नहीं रोता
क्या उसे आसूं नहीं आते ?
क्या वह कठिनाइयों से
विचलित नहीं होता ?
क्या उसके दुख अति सामान्य है ?
या उसके जीवन से आशायें लिप्त हैं ?
नहीं क्योंकि उसे विश्वास है
उसके नन्हें हाथों पर
वह अपने रूदन को
अपना संगीत बना लेता है
कठिनाईयों से वह भी विचलित होता है
पर वह उन्हें पहन कर सो नहीं पाता
ना तो उसके दुःख अति सामान्य है
ना ही सहनीय
पर
उसके पास वो है जो
उसे टूटने नहीं देती
उसका आत्म विश्वास
उसे पता होता है कि
वह एक दिन जरूर जीतेगा
बस वह इंतजार कर रहा है
उस दिन का
और उससे
यह कोई नहीं छिन सकता
द्वारा
आदर्श पराशर
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