सब कसमों और वादों से
छुट गया हूँ मैं
सच कहूं तो सीसे की भांति
टूट गया हूँ मैं
रोता नहीं मैं आसुओं मे
भूल चुका हूं मैं
सच कहूं तो गम के समंदर में
डूब चुका हूँ मैं
दामन है दागदार बस
ऊब चुका हूँ मैं
जलती में छोड घर को
फूंक चुका हूँ मै
राहों में है मोड हजारों हजार
सच कहूं तो
सीधे सडक पर रास्ता
खो चुका हूं मै
द्वारा
आदर्श पराशर