गुरुवार, 25 सितंबर 2014

टूट गया हूँ मैं

सब कसमों और वादों से
छुट गया हूँ मैं
सच कहूं तो सीसे की भांति
टूट गया हूँ मैं
रोता नहीं मैं आसुओं मे
भूल चुका हूं मैं
सच कहूं तो गम के समंदर में
डूब चुका हूँ मैं
दामन है दागदार बस
ऊब चुका हूँ मैं
जलती में छोड घर को
फूंक चुका हूँ मै
राहों में है मोड हजारों हजार
सच कहूं तो
सीधे सडक पर रास्ता
खो चुका हूं मै

द्वारा
आदर्श पराशर

मुलजिम

झांक् कर है देखता
सडक के मुहाने से
अजीब रंज है
उसको जमाने से

है मुहल्ले का
वही मुलजिम वही हाकिम
दर बदर फिरता
वही पापी वही काफी

गुजरते वक्त से सिखा है
उसने चलना अंगारों पर
सभी कहते हैं उसको
कभी मय कभी शाकी

जमाना भुल जाता है
बडे शान से जिसको
उन्ही ठूंठो में बसती है
काफिर की निशानी 

फकत इक शौक ने
रक्खा है जिंदा उसे
निकल आयेगी कभी
मुर्दों की कहानी

द्वारा
आदर्श पराशर
25-09-2014

बुधवार, 17 सितंबर 2014

सिनेमा

जिंदगी क्या है
एक सिनेमा का सेट
कभी इस रंग में
कभी उस रंग में
कभी हंसी के छींटे
कभी आंसूओं की लडी
कभी सफल कभी फिसड्डी
कभी हिरो कभी विलेन
कभी चोर कभी सिपाही
कभी राजा कभी रंक
कभी पात्र बदलते हैं
कभी दिशा
पर
रील चलती ही रहती है
तबतक जबतक
सिनेमा खत्म न हो
और फिर
कुछ लोग ताली बजाते हैं
कुछ गाली देते हैं
लेकिन कोई कुछ नहीं करता
बस हंसते हुए घर चले जाते हैं

द्वारा
आदर्श पराशर
17-09-2014

रविवार, 14 सितंबर 2014

मैं कवि बन जाता

अगर पेट नहीं होता
तो मैं कवि बन जाता
गीतों का रेट नहीं होता
तो मैं कवि बन जाता
सच है ।
आज हिंदी रोती है
जिंदगी सिनेमा का
सेट ना होता तो
तो मैं कवि बन जाता
कुत्ता इमानदार है
क्योंकि सडक पर है
रूपये का वेट ना होता तो
तो मैं कवि बन जाता
कहाँ ढूँढे दिल की
बीमारी का इलाज
मोहब्बत खेल न होता तो
तो मैं कवि बन जाता

द्वारा
आदर्श पराशर
14-09-2014

न्योछावर

रात,दिन,सुबह,शाम
तमाम शौक,तमाम जाम
बदन, रूह , ला-मकांम
मुस्तकबिल और बियाबान
तमाम तोहफे तमाम दाम
मेरा अल्लाह, मेरे राम
अश्क , दामन, एहतराम
इजहार ,अलफाज, इरशाद
अंदाज , एहसास, एहतियात
तमाम अदबी,तमाम इंतजाम
तहजीब,  तकरीर, तालीम
तसव्वुर, तफसीर,इरादे
तमाम वादे तमाम कसमें
सब कुछ दे दुंगा
बस तुम मिल जाओ

द्वारा
आदर्श पराशर
14-09-2014

प्यार और भुख

क्या करोगे सुनकर
बगावत मेरे तकदीर की
जब मेरा पेट खाली होता है
मुझे प्यार हो जाता है
प्यार और भुख
दोनों मुझको घूरते है
पूछते हैं कि
क्या मैं मंजूर हूँ
एक प्यार है जिसके बिना
मैं मर नहीं सकता
एक भुख है जो
जिने नहीं देती
लाचार मैं
प्यार चुन नहीं पाता
फिर भुख के लिए
बेचैन हो जाता हूँ

द्वारा
आदर्श पराशर
14-09-2014

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

कारण

जैसे एक पत्ता हिलता है
पर कारण हवा होती है
बिल्कुल वैसे ही
मैं जो भी हूँ
जैसे भी हूँ
उसका कारण तो तुम ही हो

जैसे कि नदी की धारा
बहते तो जल है
पर कारण आवेग होती है
जो उसे ऊँची ढलानों से मिलती है
बिल्कुल वैसे ही मेरे बहाव की
कारण तुम ही हो

जैसे कि एक बांसुरी की धुन
निकलते तो उनसे ही है
पर कारण होती है
कंठ से निकले सुर
बिल्कुल वैसे ही मेरे जीवन में
संगीत हो तुम

जैसे कि कोई चित्र कागज पर
रंग तो उनमें ही झलकता है
पर रंगो का कारण होता है
एक चित्रकार की कल्पना
बिल्कुल वैसे ही मेरे कलम में
स्याही हो तुम

जैसे कि कोई कविता
लिखते तो कलम है
पर कारण होती है
विचारों का प्रवाह
बिल्कुल वैसे ही मेरे शब्दों के
भाव हो तुम

द्वारा
आदर्श पराशर

सोमवार, 1 सितंबर 2014

तलब

बडी मशीनों से तुम इनका
आशियाना तोड दोगे
सैंकड़ों की गति मे इनको
पीछे छोड दोगे
जमाना है बरा जालिम
इनकी कमर तुम तोड दोगे
पैसे की  दिवारों से
बना है ला-मकां तेरा
तलब होगी धंधे की
तो माफिक निलामी के
तुम बेगैरत अहले सुबह
इनकी भी कीमत बोल दोगे
हजारों रास्ते है
मंजिल के दीदार के
अपने तमन्नाएं-दीद के खातिर
शिवस्ता माँ के दामन को
भी तुम छोड दोगे
पर !
बहती हवाओं को,
गाती फिजाओं को,
चहकती बुलबुलों को,
चिरागे चांद की रोशनी,
दमकते सुरज की निशानी को,
बहते बाढ की लहरों की माफिक
मचलती जवानी को,
फूलों से खिलते खालिस
आवारा गीतों की अरूनाई को,
माजी से मुस्तकबिल
खुदा की इबादत का,
चिरागे रौशनी का
कुछ हिस्सा भी क्या
सलीबों से मोड लोगे?

द्वारा
आदर्श पराशर
01/09/2014