भूख जब तलक न आए
पेट मे खुदबुद ना मचाये
मेज पर थाली सजाये
आदमी फिर क्या करे ?
रात की आबोहवा में
बह रही शीतल पवन हो
सर टिकाने के सिवा पर
मानव करे तो क्या करे ?
जल रहे दिप धू धू कर भयंकर
महलों की रोशनदान से
झाँक कर, टिमटिमाते
तारें करें तो क्या करे।
फट चुकी चुनर निरंतर
मौन यौवन की तन पर
खिलखिलाते फूल का
कांटे करे तो क्या करे?
झुक गई उस डाल का
माचिस की बारूदी भाल का
सिक रही उन गाल का
अंगारे करे तो क्या करे ?
सिता के जनानी जज्बात का
राम के लज्जा और माथ का
सूपनखा के ओछी बात का
रावण करे तो क्या करे?
अंगेजो की धिनौनी बिसात का
नये लडको की टेढी जात का
भूख के अहसास का
दलित कविता करे तो क्या करे?
By
Adarsh Prashar
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