सोमवार, 1 अगस्त 2016

शहर की रौशनी

अजी, शहर की रौशनी में दिया ढूँढ़ते हो ।

तुम पागल हो जी ,जो यहाँ वफ़ा ढूँढ़ते हो ।

निगाहो को जरा मशरूफ करके देखो तो सही

बंजर जमीं में साहब आप भी हिया ढूँढ़ते हो ।

यहाँ चारो तरफ है खडी बस उँची उँची बिल्डिंग 

इस जंगली दुनिया में तुम भी ना , हया ढूँढ़ते हो।

जब मगरूर हो के शाम हंसती है जोरो सो 

उस वक़्त तुम पगले , पाकी निशा ढूँढ़ते हो

चलो उफ़ उफ़ की बातों से करो तौबा भी 

यहाँ मुर्दो की बस्ती में तुम जहाँ ढूँढ़ते हो

पराशर आग की दरिया में तैरना मुनासिब नहीं होता

कलम से कागज के सीने में तुम वफ़ा ढूँढ़ते हो ।

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