सोमवार, 1 अगस्त 2016

चल झूठी

चल झूठी। मैंने कब कहा था ?

मैं खुश नही हूं तुम्हारे बिना !

अब तुम्हारी नजरे मेरे दिल की

किताब पढ़ ले तो कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी ।मैंने कब बताया है तुम्हे ?

मेरे रात का वो डरावना सा सपना!

आधी रात तुम चौंक के जगती हो !

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी। मैंने कब सुनाया है तुम्हे?

गिर के टूटते बिखरते दिल की आवाज !

तुम यूँही सब सीसे संजो के रखने लगी!

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी । मैंने कब जताया तुम्हें ?

अपना झूठा सा टेढ़ा सा प्यार !

हर दम मुझसे शिकायत है तुम्हे !

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी । मैंने कब कहा तुमसे?

जी नहीं सकता तेरे बिन मैं पगली।

अब तुम कहती हो मरने दूंगी क्या !

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या ?

चल झूठी । मैंने कब कहा था ?

तुम गुस्से में रहोगी मैं मनाऊंगा!

फिर भी ऑफिस के गुस्से मुझपे उतारो।

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी । कब कहा मैंने ?

तुमसे बहुत प्यार करता हूँ मैं।

फिर कसम दे के रोक लो मरने से।

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी। कहती हो ना

भरोसा नही है तुम्हे मुझपे।

फिर अँधेरे में डर के यूँ गले लगाती हो।

इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी। कहती हो की

मैं तुमसे प्यार नही करती ।

फिर मेरे घर नही आने तक जगती हो तुम

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी। पहले गली देती हो

फिर कहती हो बुरा मान गए क्या।

मेरे चुप रहने पे तुम रोती हो

तो इसमें भी कसूर मेरा है क्या?

चल झूठी कहती हो तुम

मेरा इंतजार नही करती हो।

चल झूठी। कहती हो तुम

मुझसे प्यार नही करती।

चल झूठी।

©Adarsh














कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thanks ....