उस ख़ूबसूरत सी कैनवास पे
टंगे उस अद्वितीय तस्वीर पे
उस पागल पेंटर ने कूचे से
रंगों की अजीब सी छींटाकशी की थी
सुनहरी दो लटाओं के बीच
बिखरती उस उजली लकीर से
नीचे की ओर बहती वो
दो लाल बुँदे तहजीब की तह तक
किनारो की जलती सी रौशनी से
फूटती बेमेल रंगों की किरणें
किरणों से मिलती उस उदास
चेहरे की नीरस काली भावना
फिर मिलती उस उभरते ठिकानों
की बेतरतीब ढलानों में जाकर
कुछ रंगो की बेहूदा इधर उधर
बेतरतीब सी फैली हुई परछाई
फिर अंधेरे में खत्म होती
आँखों की वो दो पुतलियां
पागल चित्रकार ने जिंदगी की
कैसी रंगीन तस्वीर बनाई है।
©【Adarsh】17/08/2016 : 02:32
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