जैसे एक पत्ता हिलता है
पर कारण हवा होती है
बिल्कुल वैसे ही
मैं जो भी हूँ
जैसे भी हूँ
उसका कारण तो तुम ही हो
जैसे कि नदी की धारा
बहते तो जल है
पर कारण आवेग होती है
जो उसे ऊँची ढलानों से मिलती है
बिल्कुल वैसे ही मेरे बहाव की
कारण तुम ही हो
जैसे कि एक बांसुरी की धुन
निकलते तो उनसे ही है
पर कारण होती है
कंठ से निकले सुर
बिल्कुल वैसे ही मेरे जीवन में
संगीत हो तुम
जैसे कि कोई चित्र कागज पर
रंग तो उनमें ही झलकता है
पर रंगो का कारण होता है
एक चित्रकार की कल्पना
बिल्कुल वैसे ही मेरे कलम में
स्याही हो तुम
जैसे कि कोई कविता
लिखते तो कलम है
पर कारण होती है
विचारों का प्रवाह
बिल्कुल वैसे ही मेरे शब्दों के
भाव हो तुम
द्वारा
आदर्श पराशर
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