बडी मशीनों से तुम इनका
आशियाना तोड दोगे
सैंकड़ों की गति मे इनको
पीछे छोड दोगे
जमाना है बरा जालिम
इनकी कमर तुम तोड दोगे
पैसे की दिवारों से
बना है ला-मकां तेरा
तलब होगी धंधे की
तो माफिक निलामी के
तुम बेगैरत अहले सुबह
इनकी भी कीमत बोल दोगे
हजारों रास्ते है
मंजिल के दीदार के
अपने तमन्नाएं-दीद के खातिर
शिवस्ता माँ के दामन को
भी तुम छोड दोगे
पर !
बहती हवाओं को,
गाती फिजाओं को,
चहकती बुलबुलों को,
चिरागे चांद की रोशनी,
दमकते सुरज की निशानी को,
बहते बाढ की लहरों की माफिक
मचलती जवानी को,
फूलों से खिलते खालिस
आवारा गीतों की अरूनाई को,
माजी से मुस्तकबिल
खुदा की इबादत का,
चिरागे रौशनी का
कुछ हिस्सा भी क्या
सलीबों से मोड लोगे?
द्वारा
आदर्श पराशर
01/09/2014
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