उसका क्या होगा जो तेरे मेरे दरमियाँ बाक़ी है ?
रंग सुर्ख गुलाब नही है बस तितलियां बाकि है !
टूट कर शीशे सा जो बिखर के हो गया चकनाचूर
शराब बाकि नही है पर दिल में कुछ नशा बाकि है।
तुम्हारी रोज की वो बेहया मुस्कान , वाह क्या कहने
तुम्हारे चेहरे में वो हया तो नहीं बस झुर्रियां बाकि है।
मैं सौ जनम तक राह तक सकता था बस तेरे लिए ।
अब उस रास्ते में फूल ख़त्म बस डालियाँ बाकि है ।
तमाम उम्र की तोहमत लगी मुझको तुम्हारे इश्क़ में
हमारे जिंदगी में अश्क़ , शबनमी सिसकियाँ बाकि है।
जो तुमने रात को चाँद के पहलु में कहा था मुझको
वो चाँद ही है जो आज भी हमारे दरमियाँ बाकि है ।
अब तुम हमारे जिंदगी में चाँद जैसे ही हो बस
हमारे दरमियाँ रौशनी नही बस फासला बाकि है ।
वो क्या समझेंगे मुझे जिन्हें नही दर्दे दिल का पता
हमारे कमरे में बस अब खुली खिड़कियाँ बाकि है
जो मजदुर सा बैठा हुआ था इश्क़ की शोहबत में
उस खेत में अब बस राख और मिट्टियां बाकि है ।
मैं रोता नहीं हूँ मतलब ये नही की रो नही सकता ।
हमारे आँख में अब बस सुखी सिसकियाँ बाकि है।
©Adarsh