मेरी खुद की कविता
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अनंत दूर विरल में,
खरे दो स्तंभ नीरव शांत।
एक लाल बंगला,
जो हर दिन खरा रहता है;
उसी जगह अविचलित।
दूर स्तंभों के ऊपर से,
उड़कर एक चिरिया;
बैठ जाती उसके मीनारों पे।
पास में ही जब उरती है,
तो ऐसा लगता है मानो,
इस अखिल विश्व में,
उसकी उडान अनंत है।
और फिर वह उर कर ,
ऊंचे स्तंभ के शीर्ष पर बैठे,
निहारती है उस बंगले को।
जो अब भी शांत ,
यूं ही खरा कर रहा है इंतजार;
उस नन्ही सी चिडिया का।
जो उस से कहीं ऊपर ,
एक शिखर पर है,
और ऊसकी नजरें;
अनंत दूर विरल में हैं।
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द्वारा-
आदर्श पराशर
सोमवार, 12 मई 2014
मेरी खुद की कविता
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राम राम जि मेँ FACEBOOK मेँ सेर केसे कारु फेशवुक चिन्ह काहा है
जवाब देंहटाएंराम राम जि मेँ FACEBOOK मेँ सेर केसे कारु फेशवुक चिन्ह काहा है
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