मेरी बात सुनो नहीं तो,
दिल्ली के जंतर मंतर पर
मैं भी धरने पर बैठूँगा
फिर आना भीर इकठ्ठी करके
मुझे चाहिए और नहीं कुछ
बस मेरी तुम बात सुनो
मुझे मेरी संस्कृति लौटा दो
बाकी सब तुम खुद ही रख लो
तुम भारत को भारत रहने दो
पश्चिम के ना पैरोकार बनो
मुझे मेरी गंगा लौटा दो
बाकी सब तुम खुद ही रख लो
तुम चाहो तो यह कुरता भी ले लो
कुछ और कहो तो दे दुंगा
बस मेरी बहनों की साडी मत छुना
बाकी सब तुम खुद ही रख लो
तुम भूखे हो तो बोलो ना
मैं अपनी थाली दे देता हूँ
पर जिस्मानी भुख मिटाने को
तुम अपनी आँख उठाना मत
देखो मैं चुप रहता हूँ
बस मेरी मर्यादा का ख्याल रहे
मुझको बस मुझको दे दो
बाकी सब तुम खुद ही रख लो
मेरी बात नहीं सुनी तो
नहीं सुनो
पर चंचल मेरी कविता को पढ कर
चुप बैठोगे यह ठीक नहीं
फिर
दिल्ली के जंतर मंतर पर
मैं भी धरने पर बैठूँगा
फिर आना भीर इकठ्ठी करके
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आदर्श पराशर
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