रविवार, 25 मई 2014

हो प्रतित कितना भी सुंदर


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कितने भी हम रंग ले खुद को
मंहगी महंगी रोली से
पर चंचल मन कहीं टिके अगर तो
केवल प्रियतम की सूरत कोरी पे

हो प्रतित कितना भी सुंदर
कलिपत जो वह जीवन नभ है
सुख मिले अगर तो मिले मगर
जो जीवन निज धाम सरल है

जब तक जय हो ,
पर हो माया  से ग्रस्त अगर,
कैसे फिर हो सकता है
अंतरमन का तेज प्रखर

तम हो प्रतित कितना भी शक्तिमान
रक्त भरित दो आखों  से
पर कब टिक  सकता है आखिर
शोभित सरल शोणित निज आंखो पे
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द्वारा
आदर्श पराशर

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