रविवार, 17 अगस्त 2014

उलझन

रेषु के उलझे गेषु में
मन को समझाऊँ कैसे
जीवन  की उष्मा में जलते
अधरों की प्यास बुझाउ कैसे

जो निझर्र मे बहते आए
अतितीर्व वेग में जनमों  से
इन आवारा  अरूनाई में
लहरों को दिशा दिखाऊ कैसे

अतिरिक्त चाप में बहने वाले
रूधिर जनित ऊष्मा को
कर सके शांत जो जल
वो जल लाऊँ कैसे

अतुलित साहस से बढते
रण में करते जो सिंहदहार
उन शोणित शीर्ष क्रम को
जीवन के गीत सुनाऊँ कैसे

फंसे हुए जो बीच धार में
छोड चुके जो पतवार 
उस नाविक को अपने
नौका में लाऊं कैसे

सुन चुके बहुत जो गाण
कर सके जो त्राण
वो मधुर संगीत बाण
अपने तरकश में लाऊँ कैसे

द्वारा
आदर्श पराशर

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