मंगलवार, 21 जुलाई 2015

सलवटें

हजारों ख्वाहिशें है दरमियाँ
तेरे मेरे बीच मगर ।
कुछ सिलवटें भी है
जो हमें दिखती तो नही हैं।

हजारों तारे हैं इस
आसमां में लेकिन
फासले से सब तारे
चांद सी दिखती तो नहीं है।

खिले पतझड में जो
फूल बनकर।
सावन भी उन्हें कभी
सुंदर दिखती तो नही है।

नजारे लाख रौशन हो
तो क्या हुआ। 
पंतगो को अपनी किस्मत
पर दिखती तो नहीं है।

रहा कुछ खास ही रिश्ता
अंधेरे से हमारा।
पर उजाले में मुझे
दुनिया दिखती तो नही है।

चलो चलता हूं आज फिर से
कहीं दुर तेरे साथ।
इस जिंदगी में हिसाब 
अपनी मिलती तो नहीं है।

कर ले लाख कोशिशे भले ही
चांद भी लेकिन।
प्यासी धरती की  अधरे उसको
कभी मिलती तो नहीं है ।





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